Friday, 06 Apr 2012 2:19:04 hrs IST
पाली। ५ अप्रेल २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
आचार्य महाश्रमण ने कहा कि भगवान महावीर अहिंसा के अवतार थे। उन्होंने समता व अहिंसा की साधना की। तप से केवल ज्ञान प्राप्त कर महापुरूष बन गए। दुनिया के उच्च कोटि के महापुरूषों में महावीर का अहम स्थान है। वे अहिंसा यात्रा के दूसरे दिन अणुव्रत नगर में गुरूवार सुबह प्रवचन कर रहे थे।
उन्होंने महावीर के जीवन दर्शन का उल्लेख करते हुए कहा कि महावीर ने जैसा उपदेश दिया वैसा ही जीवन जिया।
उन्होंने गर्भावस्था में ही अनुकम्पा का प्रयोग कर लिया था। दीक्षा के संदर्भ में कहा कि दीक्षा में व्यक्ति का पुरूषार्थ व संयम बोलता है। साधु-साघ्वियों को साधना का विकास करना चाहिए। साधना का विकास होने पर दूसरों के लिए आदर्श बन सकते हैं। साधु-साघ्वियां गांव-गांव जाकर उपदेश व तथ्य बोध देते हैं। आत्मकल्याण के साथ जनकल्याण का संदेश देते हैं।
धर्म का उपदेश देना ही साधुओं का कर्म है। बदलते परिवेश में भगवान महावीर का संदेश का प्रचार-प्रसार करने की आवश्यकता है। इससे पहले मुनि सुमेरमल व अन्य मुनियों ने भी प्रवचन किए। आचार्य श्री महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति के मुख्य संयोजक भैरचंद गोगड़ ने आभार जताया।
नशा मुक्त हो समाज
आचार्य ने कहा कि लोग भौतिक सुख सुविधाओं के साथ मांस-मदिरा, तम्बाकू व गुटखा आदि व्यसनों की गिरफ्त में है। नशा छोड़ने का संकल्प लेने का अह्वान करते हुए कहा कि नशा मुक्त समाज का निर्माण अहिंसा यात्रा का उद्देश्य है।
आचार्य ने कहा कि लोग भौतिक सुख सुविधाओं के साथ मांस-मदिरा, तम्बाकू व गुटखा आदि व्यसनों की गिरफ्त में है। नशा छोड़ने का संकल्प लेने का अह्वान करते हुए कहा कि नशा मुक्त समाज का निर्माण अहिंसा यात्रा का उद्देश्य है।
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