ॐ (AUM) |
ओम शब्द का जैन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। ओम जैन धर्म का प्रतीक चिह्न है। जैन धर्म में ओम एकाक्षर है जो पांच अक्षरो "अ + अ + आ + उ + म" के मिलने से बना है। ये पांच अक्षर क्रमशः "अरिहंता", "असरीरा", "आर्चाय", "उपाध्याय" तथा "मुनी" को प्रकट करते है। ओम एकाक्षर पञ्चपरमेष्ठि का स्वरुप है।
द्रव्यसंग्रह में ओम के लिए कहा गया हैः ओम एकाक्षर पञ्चपरमेष्ठिनामादिपम् तत्कथमिति चेत "अरिहंता असरीरा आयरिया तह उवज्झाया मुणियां" |
हिन्दू धर्म के वेदों में भगवान का स्वरूप ॐ अक्षर ही है। गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं, सम्पूर्ण वेदों में प्रणव ओंकार मैं ही हूं। भगवद्गीता में ओम शब्द के कई अर्थ हैं। इसे अएम, उदगीथ, एकाक्षर मंत्र, ओंकार, नादब्रम्ह, पंचवर्ण, परमाक्षर, प्रणव, ब्रम्हाक्षर, वेदादि, शब्दब्रम्ह, शब्दाक्षर, स्वर ब्रम्ह भी कहते है।
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वैज्ञानिक आधार: रिसर्च ऐंडइंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंस के प्रमुख प्रो. जे. मार्गनऔर उनके सहयोगियों ने सात वर्ष तक के इस ॐ के प्रभावों का अध्ययन किया। इस दौरान उन्होंने मस्तिष्क और हृदय की विभिन्न बीमारियों से पीडित 2500 पुरुषों और 2000 महिलाओं का परीक्षण किया। इन सारे मरीजों को केवल वे ही दवाइयां दी गई, जो उनका जीवन बचाने के लिए आवश्यक थीं। शेष सब बन्द कर दी गई। सुबह 6 से 7 तक इन लोगों को खुले वातावरण में ॐ मंत्र का जाप कराया गया।
उन्हें विभिन्न ध्वनियों और आवृत्तियों में ॐ का जाप कराया गया। हर तीन माह में हृदय, मस्तिष्क के अलावा पूरे शरीर का स्कैनकराया गया। चार साल तक ऐसा करने के बाद जो रिपोर्ट सामने आई, वह आश्चर्यजनक थी। सत्तर प्रतिशत पुरुष और बयासी प्रतिशत महिलाओं में ॐका जाप शुरू करने के पहले बीमारियों की जो स्थिति थी, उसमें नब्बे (90) प्रतिशत कमी दर्ज की गई। इस प्रयोग से यह परिणाम भी प्राप्त हुआ कि नशे से मुक्ति भी ॐ के जाप से प्राप्त की जा सकती है। इसका लाभ उठाकर जीवन भर स्वस्थ रहा जा सकता है। प्रो. मार्गनकहते हैं कि विभिन्न आवृतियों और ध्वनि के उतार-चढाव से पैदा होने वाली कम्पन क्रिया से मृत कोशिकाओं का पुनर्निर्माण हो जाता है। रक्त विकार होने ही नहीं पाता। मस्तिष्क से लेकर नाक, गला, हृदय रोग और पेट तक तीव्र तरंगों का संचार होता है। रक्त विकार दूर होता है और स्फूर्ति बनी रहती है। |
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