May 19, 2012

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एकासन में रखें विवेक




बालोतरा १८ मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
एकासन में भी विवेक होना आवश्यक है। ऐसा न हो कि तीन-चार बार का खाना एक बार में ठूंस-ठूंस कर खा लिया जाए। सुबह नाश्ते में भी अधिक नहीं खाना चाहिए। उपवास के पारणे में भी कई लोग अधिक खा लेते हैं। पारणे में अधिक खाना नुकसानप्रद है।

गुरुदेव तुलसी अपने जीवन का एक संस्मरण सुनाया करते थे। वे जब छोटे थे तो उपवास के पारणे में कई द्रव्य ले लेते थे। उससे पारणे के बाद बेचैनी हो जाती। पैरों में भारीपन का अनुभव होता। एक बार उन्होंने एक अनुभवी श्रावक से इसका समाधान पूछा। उसने परामर्श दिया कि पारणे में आप थोड़े से दूध के अतिरिक्त कुछ न लिया करें। उस विधि से पारणा शुरू किया तो कोई कठिनाई नहीं हुई। पारणे में संयम बहुत आवश्यक है। व्यक्ति अठाई करे, पंद्रह का तप करे या मासखमण तप करे और पारणे तथा पारणे के कुछ दिन बाद तक खाने में संयम न रखें तो तपस्या बदनाम भी हो सकती है। मनुष्य का हित भोजन करना चाहिए। हित भोजन अर्थात् हितकार भोजन। परिमित भोजन में भी वैसा खाना जो हितकार हो। जो खाना स्वास्थ्य के लिए अहितकर हो उससे बचना चाहिए।


ऋत भोजन: कैसे खाएं? प्रश्न का तीसरा उत्तर है कि ऋत भोजन। इसका शाब्दिक अर्थ है कि सत्य भोजन यानी ईमानदारी से, सच्चाई से अथवा श्रम से उपार्जित पैसे से प्राप्त होने वाला भोजन। बेईमानी से प्राप्त अन्न को अच्छा नहीं माना गया है। दूसरों को खून चूसकर जो व्यक्ति पैसा कमाता है, उसकी स्वयं की आत्मा तो भीतर से कचोटती ही है औरों की दृष्टि में भी वह अच्छा नहीं समझा जाता। कहा भी जाता है कि नीति का पैसा बरकत करता है। धर्म से आजीविका चलाने वाला श्रावक होता है। गृहस्थ साधु की तरह अपरिग्रही नहीं बन सकता। मांगकर नहीं खा सकता किंतु अर्जन के साथ साधन शुद्धि का विचार जुडऩा चाहिए। साधन शुद्धि से उपार्जित वैभव से आजीविका चलाने वाला व्यक्ति शांति और सम्मान से जीवन जीता है। इस प्रकार मित भोजन, हित भोजन और ऋत भोजन, ये तीन सूत्र भोजन के साथ जुड़ जाएं तो कैसे खाएं? इस प्रश्न का समाधान हो सकता है।

आचार्य महाश्रमण

आओ हम जीना सीखें
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