May 15, 2012

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सोने से पूर्व मन को पवित्र करें



Tuesday, 15 May 2012 by mahaveer jain

सोने से पूर्व मन को पवित्र करें
आओ हम जीना सीखें
१४ मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो

बालोतरा एक कपड़े का व्यापारी घर में सो रहा था। सोते वक्त उसका दिमाग व्यापार में उलझा हुआ था। उसने स्वप्न में देखा कि ग्राहक आया है। मैं उसे कपड़ा दे रहा हूं। वह सोते-सोते अपनी पहनी हुई धोती को फाडऩे लगा। कपड़े फटने की आवाज सुनकर वह जागा, सोचा, आवाज कहां से आई? ध्यान देने पर पता चला कि अपनी धोती ही हाथों में आ गई और उसे फाड़ दिया। यह क्लेश मुक्त नींद की स्थिति नहीं है। इसलिए आवश्यक है कि सोने से पूर्व व्यक्ति अपने मन को पवित्र विचारों से भावित करे, आवेग और आवेश को अलविदा कहकर सोए। दिमाग पर बोझ न हो, आसक्ति न हो। पवित्र और सात्विक विचारों को मन आंगन में क्रीड़ा करने दें ताकि भाव शुद्ध हों व गहरी नींद भी आ सके। जिस भावना या विचार के साथ व्यक्ति सोया है, नींद में भी उसका प्रभाव बना रह सकता है। सोते समय योग निद्रा की स्थिति हो। शरीर के प्रत्येक अवयव व प्रत्येक कोशिका पर ऊं अर्हं या अपने किसी ईष्ट मंत्र का जाप भी किया जा सकता है। प्रेक्षाध्यान साधना में कार्योत्सर्ग का प्रयोग कराया जाता है। इसे शिथिलीकरण भी कहा जा सकता है। सोते समय शरीर को स्थित करके शिथिलता का सुझाव देते हुए कार्योत्सर्ग में प्रवेश किया जाए। दीर्घश्वास का प्रयोग चले। इस प्रकार कार्योत्सर्ग का प्रयोग करते-करते व्यक्ति गहरी नींद में चला जाता है, जिससे तन और मन दोनों स्फूर्त हो जाते हैं। सहज साधना का प्रयोग भी हो जाता है।

भावनिद्रा भी टूटे
१४ मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो

सैद्धान्तिक दृष्टि से विचार करें तो नींद का संबंध हमारे भीतर संस्कारों के साथ है। कर्मवाद की भाषा में दर्शनावरणीय कर्म के विपाक से प्राणी नींद लेता है। इस कर्म का जैसा विपाक होता है, नींद भी उसी ढंग की आती है। एक दूसरे प्रकार के नींद होती है जिसे मूच्र्छा की नींद कहते है। इस नींद के अधीन बना व्यक्ति जागता हुआ सोता है। यह नींद आत्मविकास में बाधक है। इसके परिणाम हैं अविरति और अधर्माचरण। जो व्यक्ति धार्मिक है, विषय-भोगों से विरत है, सत्प्रवृत्ति में रत है, वह सोता हुआ भी जागता है।


आचार्य महाश्रमण
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