May 11, 2012

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कर्म निर्जरा का हो लक्ष्य : आचार्य




13 hours ago 




बालोतरा ११ मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो के लिए

जैन तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने आश्रव को संसार का कारण बताते हुए कहा कि आश्रव भव का हेतु है, जन्म-मरण का कारण है। प्राणी एक जन्म से दूसरे जन्म में जाता है इस क्रम का आधार आश्रव है। बिना आश्रव के जन्म-मरण की परम्परा नहीं चल सकती। आचार्य गुरुवार को नया तेरापंथ भवन में धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे।

आचार्य ने आश्रव को परिभाषित करते हुए कहा कि कर्मों को उत्कृष्ट करने में हेतु भूत आत्म परिणाम आश्रव है। कर्मों के आने का मार्ग आश्रव है। आश्रवों के द्वारा कर्म आता है तो आत्मा रूपी तडाग भर जाता है। आचार्य ने कहा कि मिथ्यात आश्रव बहुत बड़ा आश्रव है। अणुव्रत भी आश्रव है। कषाय से बंध होता है। आचार्य ने प्रेरणा देते हुए कहा कि आश्रव में शुभयोग का भी बंध होता है, पर व्यक्ति का लक्ष्य निर्जरा का रहे। आचार्य ने धर्माधारजे मुझे तारों गीत गया तो पूरी परिषद गुरुदेव के प्रति श्रद्धानत हो गई। मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि जो जागता है वह स्वयं को साधता है। व्यक्ति का लक्ष्य बहुत ऊंचा होना चाहिए।

उसकी मंजिल बहुत मनभावनी है, वहां पहुंचने के बाद व्यक्ति निद्वन्द व निर्विकल्प बन जाता है। लेकिन वहां पहुंचने के लिए सतत पुरुषार्थ करना पड़ता है और निवृति का मार्ग अपनाना पड़ता है। भीतर से जागने वाला व्यक्ति लक्ष्य तक पहुंच सकता है। कार्यक्रम के प्रारंभ में मुनि राजकुमार ने मिनखा रे थे जागो रे गीत से जागृति का संदेश दिया। कार्यक्रम के अंत में विद्या भारती विद्यालय गुडग़ांव की ओर से निर्मित स्मारिका अनुभूति धनपत लूणिया की ओर से आचार्य को दी गई।



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