महत्वपूर्ण है बच्चों में सुसंस्कार
आओ हम जीना सीखें
बालोतरा ३१ मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
एक कार्य है बच्चों को सुसंस्कारित करना। घर में बहुएं दूसरे-दूसरे कार्यों में लगी रहती हैं। उनके पास बच्चों को संभालने का पर्याप्त समय नहीं मिलता। ऐसी स्थिति में बच्चों को सुसंस्कार देने का काम यदि वृद्ध माताएं संभाल लेती हैं तो उसके तिहरे लाभ हैं। बहुओं को सहयोग मिलता है, वृद्ध माताओं को अपने समय का सदुपयोग करने का एक अच्छा आलंबन मिल जाता है और बच्चों का हित भी हो जाता है।
प...्रसंग लुई नवम का
पठित की स्मृति के अनुसार फ्रांस की राज-परम्परा में एक लोकप्रिय, प्रभावी एवं प्रतापी राजा हुए हैं, लुई नवम। उन्होंने अपने जीवन की सफलता की चर्चा करते हुए उसका श्रेय अपनी माता को दिया है। जब वे बच्चे थे, एक दिन मां ने उनको अच्छा आदमी बनने की प्रेरणा देते हुए कहा कि बेटे! तुम्हें कोई गलत काम नहीं करना है। यदि तुम गलत रास्ते पर जाते हो, अपनी आत्मा पर किसी कलंक का टीका लगाते हो तो मैं तुम्हें सिंहासन पर बैठा देखने के बजाय सिंहासन को खाली देखना पसंद करूंगी। तुम्हें गलत कार्य करते देखूं, इसकी अपेक्षा तुम्हारी लाश देखना ज्यादा पसंद करूंगी। बात कड़वी अवश्य थी पर मार्मिक थी। बच्चे के ह्रदय को छू गई। बड़ी विनम्रतापूर्वक लुई नवम बोले-मां! मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि तुम्हारा यह बेटा भले ही राजा बने या न बने, परंतु एक अच्छा नागरिक अवश्य बनेगा। मां से दिशा-बोध पाकर लुई नवम ने अपने जीवन की दिशा तब से ही सही बना ली। फलत: आगे चलकर वे एक दयालु, नीति निष्ठ, प्रभावी एवं जनप्रिय राजा बने, यह एक ऐतिहासिक तथ्य है।
यह एक उदाहरण है। ऐसे और भी अनेक उदाहरण मिल सकते हैं। मूलभूत बात है बच्चों में सुसंस्कार भरने की। माताएं कभी-कभी ऐसी शिक्षा प्रदान करती हैं कि उससे बच्चे के पूरे जीवन की सही दिशा निर्धारित हो जाती है। वह सत्पथ का राही बन जाता है। मेरी दृष्टि में बच्चों में संस्कार-निर्माण का कार्य बहुत ही महत्वपूर्ण है। वृद्धजन और उनमें भी विशेषत: माताएं इस कार्य को बहुत अच्छे ढंग से संपादित कर सकती है। तात्विक दृष्टि से उनके लिए यह एक महान कर्म-निर्जरा का हेतु हो सकता है। बच्चों का लाभांवित होना तो बिल्कुल स्पष्ट ही है।
वृद्धावस्था को व्यक्ति कैसे जीए, इस दृष्टि में मैंने कुछ बिंदुओं की चर्चा की। इस क्रम में कुछ और भी बिंदु हो सकते हैं। अपेक्षा है वृद्धजन इनका सलक्ष्य अभ्यास करें, बल्कि वृद्धावस्था आने से पूर्व ही इनको जीवनगत बनाने का क्रम शुरू कर दें, जिससे वृद्धावस्था अभिशाप नहीं, वरदान बन सके।
आचार्य महाश्रमणSee more
आओ हम जीना सीखें
बालोतरा ३१ मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
एक कार्य है बच्चों को सुसंस्कारित करना। घर में बहुएं दूसरे-दूसरे कार्यों में लगी रहती हैं। उनके पास बच्चों को संभालने का पर्याप्त समय नहीं मिलता। ऐसी स्थिति में बच्चों को सुसंस्कार देने का काम यदि वृद्ध माताएं संभाल लेती हैं तो उसके तिहरे लाभ हैं। बहुओं को सहयोग मिलता है, वृद्ध माताओं को अपने समय का सदुपयोग करने का एक अच्छा आलंबन मिल जाता है और बच्चों का हित भी हो जाता है।
प...्रसंग लुई नवम का
पठित की स्मृति के अनुसार फ्रांस की राज-परम्परा में एक लोकप्रिय, प्रभावी एवं प्रतापी राजा हुए हैं, लुई नवम। उन्होंने अपने जीवन की सफलता की चर्चा करते हुए उसका श्रेय अपनी माता को दिया है। जब वे बच्चे थे, एक दिन मां ने उनको अच्छा आदमी बनने की प्रेरणा देते हुए कहा कि बेटे! तुम्हें कोई गलत काम नहीं करना है। यदि तुम गलत रास्ते पर जाते हो, अपनी आत्मा पर किसी कलंक का टीका लगाते हो तो मैं तुम्हें सिंहासन पर बैठा देखने के बजाय सिंहासन को खाली देखना पसंद करूंगी। तुम्हें गलत कार्य करते देखूं, इसकी अपेक्षा तुम्हारी लाश देखना ज्यादा पसंद करूंगी। बात कड़वी अवश्य थी पर मार्मिक थी। बच्चे के ह्रदय को छू गई। बड़ी विनम्रतापूर्वक लुई नवम बोले-मां! मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि तुम्हारा यह बेटा भले ही राजा बने या न बने, परंतु एक अच्छा नागरिक अवश्य बनेगा। मां से दिशा-बोध पाकर लुई नवम ने अपने जीवन की दिशा तब से ही सही बना ली। फलत: आगे चलकर वे एक दयालु, नीति निष्ठ, प्रभावी एवं जनप्रिय राजा बने, यह एक ऐतिहासिक तथ्य है।
यह एक उदाहरण है। ऐसे और भी अनेक उदाहरण मिल सकते हैं। मूलभूत बात है बच्चों में सुसंस्कार भरने की। माताएं कभी-कभी ऐसी शिक्षा प्रदान करती हैं कि उससे बच्चे के पूरे जीवन की सही दिशा निर्धारित हो जाती है। वह सत्पथ का राही बन जाता है। मेरी दृष्टि में बच्चों में संस्कार-निर्माण का कार्य बहुत ही महत्वपूर्ण है। वृद्धजन और उनमें भी विशेषत: माताएं इस कार्य को बहुत अच्छे ढंग से संपादित कर सकती है। तात्विक दृष्टि से उनके लिए यह एक महान कर्म-निर्जरा का हेतु हो सकता है। बच्चों का लाभांवित होना तो बिल्कुल स्पष्ट ही है।
वृद्धावस्था को व्यक्ति कैसे जीए, इस दृष्टि में मैंने कुछ बिंदुओं की चर्चा की। इस क्रम में कुछ और भी बिंदु हो सकते हैं। अपेक्षा है वृद्धजन इनका सलक्ष्य अभ्यास करें, बल्कि वृद्धावस्था आने से पूर्व ही इनको जीवनगत बनाने का क्रम शुरू कर दें, जिससे वृद्धावस्था अभिशाप नहीं, वरदान बन सके।
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