May 30, 2012

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मन को साधने से ही ब्रह्मचर्य का पालन: आचार्य




मन को साधने से ही ब्रह्मचर्य का पालन: आचार्य
समदड़ी २९ मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
ब्रह्मचर्य व्रत सभी व्रतों से श्रेष्ठ है। मन को साधने से ही ब्रह्मचर्य व्रत का पालन हो सकता है। यदि मन को वश में रखा जाए तो व्यक्ति गृहस्थ जीवन में भी साधना कर सकता है। यह बात आचार्य महाश्रमण ने समदड़ी प्रवास के तीसरे दिन सोमवार को उपस्थित श्रावकों को प्रवचन के दौरान कही।

उन्होंने कहा कि काम धर्म सम्मत होना चाहिए। काम पर अंकुश रखने से शरीर पृष्ठ होने के साथ-साथ मन भी पवित्र होता है। पति-पत्नी दोनों को काम, धर्म सम्मत करना चाहिए। ब्रह्मचर्य व्रतधारी व्यक्ति को देव-दानव व गंधर्व प्रणाम करते है। उन्होंने काम पर व्याख्या करते हुए कहा कि जीवन में काम व अर्थ पर संयम होना चाहिए। धर्म व शास्त्रों के अनुसार किया गया काम कल्याणकारी है। व्यक्ति को काम को वासना की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। आचार्य ने कहा कि गृहस्थ जीवन में भी काम पर अंकुश रखकर जीवन को साधना के शिखर तक ले जा सकता है।

श्रद्धालुओं की रही भीड़

आचार्य महाश्रमण के छह दिवसीय प्रवास के दौरान तेरापंथ भवन में श्रद्धालुओं की जोरदार भीड़ रही। यहां रोजाना सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु आचार्य का प्रवचन सुनने आ रहे है।

बाड़मेर के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र व अन्य जिलों से आने वाली बसों की कतारें लगी रहती है। महाश्रमण के आगमन के बाद कस्बे में मेले जैसा माहौल बन गया है।

रात को होते हैं धार्मिक कार्यक्रम:

रात को 8.30 बजे से धार्मिक कार्यक्रमों का सिलसिला शुरु होता है। कार्यक्रमों में गीत, कविता सहित कई अन्य गतिविधियों आचार्य के सान्निध्य में आयोजित की जा रही है। इसके बाद आचार्य महाश्रमण श्रद्धालुओं को उपदेश दे रहे हैं।
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