Feb 4, 2013

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सच्चाई के प्रति सम्मान रखें : आचार्य श्री



टापरा में धर्मसभा का आयोजन, विदेशी मेहमान भी पहुंचे 

टापर 03 जनवरी 2013 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो 
'जहां राग-द्वेष की ग्रंथियां नहीं है, वह निग्र्रंथ है। निग्र्रंथ पुरुष की ओर से जो तत्व प्रतिपादित किया जाता है, जो प्रवचन निग्र्रंथ के द्वारा होता है, वह सत्य होता है क्योंकि असत्य होने का कारण नहीं है।' यह बात तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिष्ठाता आचार्य महाश्रमण ने टापरा में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही। आचार्य ने कहा कि आदमी क्रोध के भाव से, लोभ के वशीभूत होकर, भय के कारण झूठ बोल सकता है। निग्र्रंथ पुरुष में क्रोध नहीं होता है, भय व हास्य भी नहीं होता है। इसलिए निग्र्रंथ की बात पूर्णतया यथार्थ होती है। हमारी दुनिया में सच्चाई बड़ी चीज है। आदमी किसी भी दुनिया में रहे, किसी को भी आराध्य माने पर सच्चाई का पक्ष धर रहे, सच्चाई के प्रति सम्मान रखे। सच्चाई का स्थान संप्रदाय से भी ऊपर होता है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति के मन में यथार्थ की उपासना की भावना रहनी चाहिए। यथार्थ दृष्टि ही सम्यक दर्शन है, यथार्थ ज्ञान ही सम्यक ज्ञान है। सत्य राग-द्वेष मुक्ति से जुड़ा हुआ सिद्धांत है। आचार्य ने सभी साधु-साध्वियों, समणियों को आगम स्वाध्याय की प्रेरणा देते हुए कहा कि हमारे लिए आगम-वांग्मय एक आधार है। साधु-साध्वियां जितना हो सके, इसका स्वाध्याय करें। उत्तराध्ययन आगम को हम कल्याण मित्र कह सकते हैं। आगम स्वाध्याय तो साधु का भोजन है। साधना के लिए आगम हम सभी के सामने रहना चाहिए। हमारे साधु-साध्वियां जितना समय निकाल सकें, आगम का स्वाध्याय करें। प्रात: से आगम स्वाध्याय कर लेना चाहिए। आध्यात्मिक शरीर के लिए आगम स्वाध्याय का भोजन करना चाहिए। आगम स्वाध्याय चलेगा तो जैनम जयतु शासनम्, जैन शासन की जय होती रहेगी। उन्होंने कहा कि हम ध्यान दें कि हम 24 घंटों में कितना समय आगम स्वाध्याय के लिए लगाते हैं। आगम स्वाध्याय के साथ इस पर मनन करने से कुछ उपलब्धि हो सकती है। जयाचार्य ने अपना अंतिम समय आगम स्वाध्याय में बहुत लगाया था। आगम में जयाचार्य एक आदर्श पुरुष थे। हम ऐसी दिनचर्या बनाएं कि कुछ समय तो स्वाध्याय में लगे। साधु के रोज एक श्रुत सामायिक हो जाए तो एक अच्छा क्रम बन सकता है। 




निर्जरा में सहभागिता
टापर 03 जनवरी 2013 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो

आचार्य प्रवर के मुखारविंद का आज केशलुंचन हुआ। इस केशलुंचन में अपनी निर्जरा की सहभागिता के लिए साधु-साध्वियों, समणियों व श्रावक समाज ने त्रिपदी वंदना करते हुए अर्ज की। आचार्य ने सभी की निर्जरा में सहभागिता के लिए साधु-साध्वियों व समणियों को आधा घंटे का स्वाध्याय व श्रावक समाज को अतिरिक्त तीन-तीन सामायिक करने का बताया।
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