Jan 25, 2012

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राग-द्वेष को जीतने वाला महान -आचार्य महाश्रमण

आमेट में मर्यादा महोत्सवत्नव्याख्यान में आचार्य महाश्रमण ने कहा 


 आमेट २५ जनवरी २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज 
आचार्य महाश्रमण ने कहा राग-द्वेष को जीतने वाले को महान बताया है, उन्होंने कहा कि राग-द्वेष न रखने वाले का नाम चाहे महावीर हो या बुद्ध अथवा कृष्ण और राम, इसका कोई फर्क नहीं हैं। 

आचार्य मंगलवार को यहां अहिंसा समवसरण में अमृत महोत्सव के तहत दर्शनाचार प्रवचन माला में 'इणमेव णिग्गंथं पावयणं सच्चं' विषयक व्याख्यान में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति के द्वारा व्यक्त की जा रही वाणी में अर्थ बोध का समावेश हो तो उसका अन्य के मन पर ज्यादा और प्रभावी असर हो सकता है, यह बलवान और महत्वपूर्ण होता है। यह निग्र्रंथ प्रवचन सत्य है। 

आचार्य ने कहा कि जहां राग-द्वेष होता है वहां असत्य को स्थापित होने का मौका मिलता है, निग्र्रंथ व्यक्ति जो कहता है वह सत्य ही होता है। संग्रथ प्रवचन सत्य हो या नहीं, ऐसा हो सकता है। आचार्य ने कहा कि योग शास्त्र में पांच सूत्र बताए गए हैं। व्यक्ति स्वयं को सुशोभित करने के लिए आभूषण धारण करता है और साधु निराभूषण रहकर भी सुशोभित रहता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य को बाहरी आभूषण से स्वयं को निखारने की बजाय भीतर से मन को साफ रखने का प्रयास करना चाहिए। कान को कुंडल नहीं बल्कि सुनने, शरीर को चंदन से नहीं वरन परोपकार के काम से सुगंधित करने और हाथ को दान करने से सुशोभित करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्य ने श्रावकों को दूसरों का दु:ख दूर करने का प्रयत्न करने की सीख भी दी। 

आभूषण पांच प्रकार के 
आचार्य ने शास्त्रों के अनुसार पांच तरह के आभूषण बताते हुए इनके प्रति लोगों को जागरूक रहने का प्रयास करने की सीख दी। उन्होंने कहा कि मनुष्य को अस्थिरता को स्थिर रखने की दिशा में कार्य करना चाहिए। यह सम्यक्त्व का महत्वपूर्ण आभूषण है। दूसरा आभूषण तपस्या, साधना, व्याख्यान के द्वारा धर्म की महिमा को आगे बढ़ाने के लिए श्रावक समाज को प्रयास करना चाहिए। उन्होंने प्रवचन को विशिष्ट कला बताते हुए इसे सुनने वाले को प्रभावित करने वाली बताया। तीसरा आभूषण भक्ति का है। लोगों को धर्म और शासन के प्रति भक्ति का भाव रखना चाहिए। व्यक्ति यह मनन करें कि भले ही शरीर का त्याग कर दूं, लेकिन धर्म और साधना को नहीं छोडऩा चाहिए। अर्हत भक्ति का प्रयोग है। अर्हत वंदना में तन्मयता का भाव प्रकट हो। इस दौर परस्पर वार्तालाप और चंचलता नहीं रखें। यह वंदना में व्यवधान का काम करती है। अर्हत वंदना परमेष्टि भक्ति का प्रयोग है। 
आचार्यों के प्रति भक्ति भावना होनी चाहिए। उनके लिए गौरव का भाव मन में हो। आचार्य ने चौथा आभूषण पोषण का बताया। उन्होंने कहा कि जिन शासन में शासन की कुशलता की रक्षा के लिए प्रयास किया जाना चाहिए। पांचवां आभूषण तीर्थ सेवा का है। इसमें श्रावक समाज से अपेक्षा है कि वह समाज की आध्यात्मिक सेवा और उपासना करने की दिशा में कार्य करें। हमारे धर्म संघ में लोगों के प्रति अपने आचार्यों के प्रति कितनी श्रद्धा है। इसका अंदाजा इसी बात से ही लगाया जा सकता है कि लोग डेरा लगाकर कई समय तक उपासना करने में तल्लीन रहते है। घर की सुख-सुविधाओं को छोड़कर कुटीर में रहते है। यह एक उपलब्धि है। उन्हें धर्म के माहौल में रहने का मौका मिलता है। 


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