Apr 25, 2012

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अक्षय तृतीया तप आत्मशोधन का मार्ग: मुनि श्री मदन कुमार जी


विशेष 
अक्षय तृतीया 
तप आत्मशोधन का मार्ग: मुनि श्री मदन कुमार जी 
बालोतरा जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो २४ अप्रेल २०१२ 
अक्षय तृतीया तप की प्रेरणा का दिन है। इसके साथ आद्य तीर्थकर भगवान ऋषभ से संबंध जुड़ा हुआ है। इस दिन भगवान ने दीक्षा ली और भिक्षाटन प्रारंभ किया। यह क्रम एक वर्ष साधिक चलता रहा, न भोजन और न पानी। अंतराय कर्म का प्रबल योग था। जनता में भावना थी किंतु भिक्षा विधि का बोध नहीं था। आखिर प्रपौत्र श्रेयांस कुमार ने जाति स्मरण ज्ञान से भगवान के भ्रमण का रहस्य जाना। उसके द्वारा प्रदत्त प्रासुक एषणीय इक्षु रस से भगवान के सहज तप का पारण हुआ। वह वैशाख शुक्ला तृतीया का दिन अक्षय तृतीया के रूप में प्रसिद्ध हो गया। भगवान का तप और पारण दोनों ही आकर्षण के केंद्र बन गए।

भगवान जितना बल कहां से लाए? न वैसा संहनन और न वैसा सामथ्र्य। फिर भी महापुरुषों के अनुसरण की मनोवृत्ति ने एक नया रास्ता ढूंढ लिया। एक दिन भोजन और एक दिन उपवास का प्रकल्प निश्चित हो गया, इसे वर्षीतप कहा गया। तप का एक नया मार्ग बन गया। महाजनों येन गत: स पंथा: के प्रतीक बने तपस्वी भाई-बहिन वर्षी तप का आलंबन लेकर आत्मशोधन के मार्ग में चल रहे हैं। यह आध्यात्मिक अनुष्ठान चिरकाल से चल रहा है और भविष्य में भी चलता रहेगा।

तप उत्तम कार्य है। जैनागम में तप के दो प्रकार बताए गए हैं - बाह्य और आभ्यंतर। इन दोनों के छह-छह प्रकार बतलाए हैं। ये सब कर्म निर्जरण के साधन है। इनके अनुशीलन से देहाध्यास छूटता है और आत्मा पवित्र होती है। बारह प्रकार के तप अनुष्ठान से आत्मोदय होता है। इनकी साधना नितांत फलदायी है।

निर्जरा व आत्म विशुद्धि के लिए तप

भगवान ने तप प्रयोग के लिए विशेष दिशा-दर्शन देते हुए कहा कि इहलोक के निमित्त तप मत करो। परलोक के लिए तप मत करो। श्लाद्या प्रशंसा के लिए तप मत करो। केवल निर्जरा के लिए आत्म विशुद्धि के लिए तप करो। भगवान की दृष्टि में वहीं तप श्रेष्ठ है जो एकमात्र मोक्ष साधना की दृष्टि से किया जाता है। इसे सकाम तप कहा है। अन्यान्य उपलब्धियों के लिए किया जाने वाला तप अकाम तप माना गया है। महत्ता, गुणवत्ता और फलवत्ता को दृष्टि से सकाम तप ही उत्तम है एवं इसी का अनुशीलन करना चाहिए।

धार्मिक व्यक्ति उपवास करता है और वह दिन भर सांसारिक क्रियाकलापों में उपवास के दिन को व्यतीत करता है तो वह उसका उपवास नहीं लंघन कहा जाएगा। उपवास करने वाला कम से कम तीन घंटा तो ध्यान, स्वाध्याय, जप आदि में लगाए। होना तो यह चाहिए कि तपस्या का आधा समय इनमें लगे तब ही तपस्या की सार्थकता हो सकती है।
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