(12/05/12 ) जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
बालोतरा. शरीर तंत्र को स्वस्थ व सक्रिय रखने के लिए निद्रा जरूरी है। नींद एक प्रकार का विश्राम है। व्यक्ति प्रवृत्ति करता है। प्रवृत्ति से थकान आती है। थकान के बाद व्यक्ति विश्राम की अभिलाषा करता है। विश्राम के लिए वह निद्रा देवी की गोद स्वीकार करता है। कौन व्यक्ति कितनी नींद ले इस संबंध में कोई निश्चित अवधारणा नहीं है। यद्यपि अवस्था के साथ नींद का विचार किया गया है पर उसमें भी कोई नियामकता नहीं है। कुछ व्यक्ति बहुत कम नींद लेकर भी ताजगी का अनुभव करते हैं तो कुछ लोग पर्याप्त नींद लेकर भी अलसाए रहते हैं। योगी और कर्मशील व्यक्ति नींद को बहुमान नहीं देते। भगवान महावीर का साढ़े बारह वर्षों का साधना काल रहा। इसमें उन्होंने बहुत कम नींद ली। सामान्यत: नींद का संबंध अपनी-अपनी शारीरिक-प्रकृति के साथ है। सामान्यत: बच्चे अधिक नींद लेते हैं, उनकी नींद गहरी होने के साथ मीठी होती है। हम बाल मुनियों को जब सुबह उठाते हैं, तो उनमें से कुछ बड़ी मुश्किल से उठते हैं। जैसे-जैसे आयु बढ़ती है, नींद प्राय: कुछ कम हो जाती है।
सोने की कला-
(12/05/12 ) जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
सोना भी एक कला है। उसकी कसौटी है अच्छी और गहरी नींद लेना। व्यक्ति स्वस्थ हो, दिमाग पर किसी प्रकार का भार न हो, चित्त प्रसन्न हो तो नींद अच्छी आती है। आचार्य को मैंने देखा कि जीवन के नौवें दशक में भी उन्हें गहरी और अच्छी नींद आती थी। कई बार तो वे सोते ही तत्काल नींद में चले जाते थे। यह बहुत अच्छी स्थिति है। तनाव मुक्त जीवन जीने वाला व्यक्ति ऐसी नींद ले सकता है। ऐसी नींद वास्तव में कलात्मक नींद है। सोते सब हैं पर सोने की कला विरले व्यक्ति ही जानते हैं। इस कारण कुछ व्यक्ति अति निद्रा के शिकार हो जाते हैं, तो कुछ अनिद्रा के। अति चाहे नींद की हो या जागरण की, दोनों ही ठीक नहीं है। जान बूझकर नींद न लेना और नींद दूर करने के लिए प्रयत्न करना एक दृष्टि से अच्छा नहीं होता। उससे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। खाते-पीते, उठते-बैठते, सोते-जागते व्यक्ति के दिमाग में विचारों की भीड़ उमड़ती रहती है। सोते समय भी वह अकेला नहीं होता। फलत: वह चैन से नींद नहीं ले पाता।
आचार्य महाश्रमण
(12/05/12 ) जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
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