May 13, 2012

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आत्मा का निर्मल होना ही निर्जरा : आचार्य




नया तेरापंथ भवन में धर्मसभा आयोजित
बालोतरा (12/05/12 ) जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
निर्जरा को अनुप्रेक्षा बताते हुए आचार्य महाश्रमण ने कहा कि तपस्या व निर्जरा दोनों संबंधित है। तपस्या कारण है और निर्जरा कार्य। तपस्या से निर्जरा होती है। निर्जरा को परिभाषित करते हुए गुरुदेव ने कहा कि तपस्या के द्वारा कर्मों के अलग होने से आत्मा का निर्मल होना निर्जरा है। सभी कर्मों के टूटने से आत्मा की संपूर्ण विशुद्धि होना मोक्ष है और आत्मा की आंशिक विशुद्धि निर्जरा है। आचार्य ने प्रेरणा देते हुए कहा कि साधक निर्जरा की भावना से तपस्या करें। यह बात आचार्य नया तेरापंथ भवन में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।

आचार्य ने संलेखना पूर्वक मृत्यु वरण की उपादेयता बताते हुए कहा कि जैसे जीवन जीने का तरीका होता है वैसे ही मरने का भी एक तरीका होता है। आदमी प्रयास करे कि उसके प्राण अनशन पूर्वक, समाधिपूर्वक व आत्मलीनता में छूटे। उसके प्राण अध्यात्म के माहौल में छूटे। इसलिए व्यक्ति का प्रयास रहे कि उसका मरण तपस्या व समाधिकरण में हो। उन्होंने कहा कि त्याग, तप बढऩे पर आत्मा निर्मल को प्राप्त होती है। ऊनोदरी, नवकारसी, आलोयना, साधुओं को वंदना करना, सेवा, स्वाध्याय, व्याख्यान देना, प्रवचन सुनना, संघ की सेवा करना भी निर्जरा है।

मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि धर्म का जागरण जिस व्यक्ति के जीवन में आ जाता है वह स्वयं के साथ औरों को भी जगाता है। वह परिवार भाग्यशाली है जिस परिवार का प्रत्येक सदस्य धार्मिक हो। धार्मिक परिवेश वाले परिवार में देवता भी आने चाहते हैं। उन्होंने कहा कि व्यवहार की पढ़ाई के साथ धर्म की शिक्षा भी जुड़ जाए तो वह श्रुत संपन्न बन जाता है। कार्यक्रम की शुरूआत में मुनि राजकुमार ने 'जो गुण मिलते हैं उन्हें अपनाते जाएं' गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम के अंत में लाडनूं महिला मंडल की ओर से अभाते महिला मंडल की महामंत्री पुष्पा वैद और तेरापंथ सभा भीलवाड़ा के नवनिर्वाचित अध्यक्ष शैलेन्द्र बोरदिया ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि हिमांशु कुमार ने किया।



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