साधु करता रहे विहार : आचार्य
बालोतरा २२ मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
साधु को विहार करते रहना चाहिए। साधु को एक जगह जमकर नहीं रहना चाहिए। शारीरिक रुग्ण अवस्था, वृद्धावस्था या कोई विशेष परिस्थिति में रहना अलग बात है। लेकिन सामान्यत:: एक जगह जमकर नहीं बैठना चाहिए। यह बात जैन तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने बालोतरा में एक माह के प्रवास के अंतिम दिन सोमवार को मंगल भावना समारोह में साधु की विहार चर्या पर प्रवचन देते हुए कही। आचार्य ने स्वयं की भ्रमण, विचरण करते रहने की इच्छा बताते हुए कहा कि साधुओं को चातुर्मास एक जगह करना होता है। शेषकाल में एक माह कहीं रह सकते हैं, उससे ज्यादा नहीं रह सकते। आचार्य ने कहा कि सिवांची मालानी का सिरमौर क्षेत्र बालोतरा है। यहां पर विभिन्न कार्यक्रमों में लोगों ने रूचि से भाग लिया। लोगों में काफी भावना है। जैन शास्त्रों में यात्रा का विधान है। साधु विहार करता रहे। समय अपने ढंग से बीतता है। समय का सही उपयोग करने वाले आगे बढ़ सकते हैं। ज्ञानी आदमी ज्ञान की चर्चा व अच्छे कार्यों में समय बीतता है। व्यक्ति को सोच-समझकर सही कार्यों में समय का नियोजन करना चाहिए। लंबे काल तक रहने के बाद विदाई का अवसर आता है जो कई बार अप्रिय लगता है। प्रिय का गमन या प्रस्थान अप्रिय लगता है। आचार्य ने कहा कि सज्जन या संत पुरुष का पास में रहकर प्रस्थान करने पर दुखदायी हो जाता है। संतों का प्रवास ग्राम के लिए कल्याणकारी व सौभाग्य सूचक होता है।
आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति के संयोजक देवराज खींवसरा ने सभी संस्थाओं, व्यक्तियों व कार्यकर्ताओं का आभार जताया। कार्यक्रम के प्रारंभ में प्रकाश श्रीश्रीमाल ने गीत'गुरूदेव पाछा कद आवोला' का गान किया।
तेयुप अध्यक्ष ललित जीरावला, महिला मंडल अध्यक्ष विमला गोलेच्छा, पुखराज तलेसरा, चंपालाल गोलेच्छा, पारसमल गोलेच्छा, शांतिलाल डागा, प्रवास व्यवस्था समिति के सहमंत्री महेन्द्र वैद मूथा, ओमप्रकाश बांठिया, कमलादेवी ओस्तवाल, पारसमल भंडारी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
आचार्य ने कहा, सिवांची मालानी का सिरमौर क्षेत्र है बालोतरा
बालोतरा २२ मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
साधु को विहार करते रहना चाहिए। साधु को एक जगह जमकर नहीं रहना चाहिए। शारीरिक रुग्ण अवस्था, वृद्धावस्था या कोई विशेष परिस्थिति में रहना अलग बात है। लेकिन सामान्यत:: एक जगह जमकर नहीं बैठना चाहिए। यह बात जैन तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने बालोतरा में एक माह के प्रवास के अंतिम दिन सोमवार को मंगल भावना समारोह में साधु की विहार चर्या पर प्रवचन देते हुए कही। आचार्य ने स्वयं की भ्रमण, विचरण करते रहने की इच्छा बताते हुए कहा कि साधुओं को चातुर्मास एक जगह करना होता है। शेषकाल में एक माह कहीं रह सकते हैं, उससे ज्यादा नहीं रह सकते। आचार्य ने कहा कि सिवांची मालानी का सिरमौर क्षेत्र बालोतरा है। यहां पर विभिन्न कार्यक्रमों में लोगों ने रूचि से भाग लिया। लोगों में काफी भावना है। जैन शास्त्रों में यात्रा का विधान है। साधु विहार करता रहे। समय अपने ढंग से बीतता है। समय का सही उपयोग करने वाले आगे बढ़ सकते हैं। ज्ञानी आदमी ज्ञान की चर्चा व अच्छे कार्यों में समय बीतता है। व्यक्ति को सोच-समझकर सही कार्यों में समय का नियोजन करना चाहिए। लंबे काल तक रहने के बाद विदाई का अवसर आता है जो कई बार अप्रिय लगता है। प्रिय का गमन या प्रस्थान अप्रिय लगता है। आचार्य ने कहा कि सज्जन या संत पुरुष का पास में रहकर प्रस्थान करने पर दुखदायी हो जाता है। संतों का प्रवास ग्राम के लिए कल्याणकारी व सौभाग्य सूचक होता है।
आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति के संयोजक देवराज खींवसरा ने सभी संस्थाओं, व्यक्तियों व कार्यकर्ताओं का आभार जताया। कार्यक्रम के प्रारंभ में प्रकाश श्रीश्रीमाल ने गीत'गुरूदेव पाछा कद आवोला' का गान किया।
तेयुप अध्यक्ष ललित जीरावला, महिला मंडल अध्यक्ष विमला गोलेच्छा, पुखराज तलेसरा, चंपालाल गोलेच्छा, पारसमल गोलेच्छा, शांतिलाल डागा, प्रवास व्यवस्था समिति के सहमंत्री महेन्द्र वैद मूथा, ओमप्रकाश बांठिया, कमलादेवी ओस्तवाल, पारसमल भंडारी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
आचार्य ने कहा, सिवांची मालानी का सिरमौर क्षेत्र है बालोतरा
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