May 16, 2012


जीवन को निश्चित दिशा की जरूरत
बालोतरा १५ मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो

मुनि से तात्पर्य केवल मुनि वेष धारण करने से नहीं है, अपितु मूर्छा के टूटने से है। संन्यास के बाद भी यदि मूर्छा नहीं टूटी, भीतर की चेतना त्याग और संयम की ओर नहीं मुड़ी तो उसे जागते हुए भी जागृत नहीं कहा जा सकता।

एक संत थे। छोटी अवस्था में ही दीक्षित हो गए। बाहर से संसार छोड़ दिया, पर भीतर में संसार बसा हुआ था। वासना का धागा टूटा नहीं था। आत्म-लौ प्रज्ज्वलित नहीं हुई थी, इसलिए चिंतन के दरवाजे पर दस्तक हुई। आत्मा-परमात्मा की बातें कपोल-कल्पित हैं। यदि परमात्मा होता तो मुझे अब तक उसका दर्शन होना चाहिए था किंतु ऐसा अब तक कुछ भी नहीं हुआ। लगता है मैं ठगा गया। व्यर्थ ही संसार के भोगों से वंचित रहा। खैर, अभी भी समय है। युवा अवस्था ही तो है, पुन: घर चला जाऊं और संसार के सुख भोगूं। ऐसा विचार कर वह घर की ओर चला। शहर में पहुंचा, एक दुकान दिखाई दी। उस दुकान में जो दुकानदार बैठा था, वह उसके बचपन का साथी था। मित्र से मिलने की इच्छा जागृत हुई, दुकान के भीतर गया। वर्षों के बाद मुनि वेष में अपने साथी को देख दुकानदार भी प्रसन्न हुआ। उसने मुनि का स्वागत किया, उसे बिठाया। मुनि ने पूछा दुकान में इतने पीपे पड़े हैं, इनमें क्या रखा है? दुकानदार ने एक-एक पीपे का परिचय देते हुए बताया कि महाराज अमुक-अमुक में घी, तेल, गुड़, नमक, मिर्च, धनिया, सोंठ आदि हैं। कोने में दो पीपे और पड़े थे। मुनि ने पूछा, इन पीपों में क्या है? दुकानदार ने अपनी भाषा में जवाब दिया महाराज उन पीपों में राम-राम है। मुनि ने पूछा अरे, राम-राम भी किसी वस्तु का नाम है क्या? दुकानदार बोला महात्मा जी, आप हमारी दुनियादारी की भाषा को क्या समझें। कोई बर्तन या पीपा खाली होता है तब हम खाली है, ऐसा नहीं कहकर 'राम-राम है' ऐसा कहते हैं। ये दोनों पीपे तो खाली हैं, इनमें कुछ भी नहीं है। दुकानदार की सीधी सी कही हुई बात मुनि के दिल को छू गई। वह सोचने लगा कि इसने मुझे बड़े रहस्य की बात कही। जो खाली होता है उसी में राम-राम रहता है, भरे हुए में तो दुनियादारी है। राम-राम तो खाली रहने वालों को ही मिलता है। मुझे भी तो राम-राम को पाना है। इसके लिए पहले मन-मस्तिष्क को खाली करना होगा। जब तक दिमाग क्रोध, ईष्र्या, घृणा, अहंकार से भरा रहेगा, जब तक मन में राग द्वेष हिलोरें लेती रहेंगी, वासना में संस्कार बद्धमूल रहेंगे तब तक राम नहीं मिलेगा। बस, यह आत्मबोध जागा और वहां से चरण पुन: मुड़ गए। जिंदगी में कुछ क्षण ऐसे आते हैं जो जिंदगी को एक निश्चित दिशा देते हैं, पूरे जीवन को उजाले से भरते हैं। कभी-कभी लोग कह देते हैं कि रोजाना प्रवचन श्रवण क्यों करे? क्या होगा सुनने से? पर ऐसे प्रेरक प्रसंग इस बात के साक्षी है कि जीवन में रूपांतरण लाने के लिए, अपूर्व को ग्रहण करने, जिज्ञासा को समाहित करने, समस्याओं का समाधान पाने, सद्भाव की प्रेरणा उपलब्ध करने के लिए संत समागम बहुत उपयोगी है। उससे भावनिद्रा टूट सकती है और श्रेयस की ओर कदम आगे बढ़ सकते हैं।

आचार्य महाश्रमण
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