May 9, 2012

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छोटी लगने वाली बातों पर भी दें ध्यान


छोटी लगने वाली बातों पर भी दें ध्यान
आओ हम जीना सीखें 


बालोतरा ८ मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
हाथी को एक छोटा सा अंकुश वश में कर सकता है, एक नन्हा सा दीपक सघन अंधकार का हरण कर सकता है, बड़े-बड़े पहाड़ों को छोटा सा वज्र धराशायी कर सकता है। इसलिए 'यह छोटा है' यह समझकर किसी की अवज्ञा नहीं करनी चाहिए। छोटी लगने वाली बातों पर भी ध्यान देना जरूरी है। कैसे उठें, बैठें, चलें, बोलें आदि बातें बहुत छोटी लगती हैं पर जीवन-महल को खड़ा करने वाली नींव की ईंटें यही हैं।

चलने में विवेक


हम चलने की क्रिया पर विचार करें। चलना अर्थात गति करना। गति दो प्रकार की होती है। एक है पैरों से चलना दूसरा जीवन को विकास की दिशा में आगे बढ़ाना। किंतु इस गति में भी विवेक का होना जरूरी है। विवेक अर्थात कब चलना, कैसे चलना, क्यों चलना आदि बातों की जानकारी आवश्यक है। बिना प्रयोजन न चलें। बिना प्रयोजन वही चलता है जो समय का मूल्य नहीं आंकता। दूसरा प्रश्न है, प्रयोजन से चलें तो कैसे? आदमी उद्देश्य विशेष के साथ चलने के लिए प्रवृत्त हो तो सबसे पहले ईष्टमंत्र का स्मरण करे ताकि प्रवृत्ति के साथ मंगल जुड़े और चित्तवृत्ति मंगल से भावित हो जाए। पूज्य गुरुदेव आचार्य महाप्रज्ञ हरियाणा में विहार कर रहे थे। रास्ते में एक संत दुर्घटनाग्रस्त हो गए। उन्हें चोटें आई। आचार्य महाप्रज्ञ ने उस समय एक मंत्र दिया और कहा कि यात्रा से पूर्व इस मंत्र का स्मरण कर लेना चाहिए ताकि विघ्न-बाधाओं से बचा जा सके। चलने का विवेक अहिंसा की साधना की भी पुष्टि कर सकता है। दशवैकालिक सूत्र में चलने का विवेक देते हुए कहा गया है कि साधु जल्दी-जल्दी न चले, स्वाध्याय करता हुआ न चले, व्यग्र चित्त से न चले आदि। एक राजस्थानी दोहा है-

नीचै देख्यां चार गुण, गमी वस्तु मिल जाय।
दया पळै, हिंसा टळै, दृष्टि दोष टळ जाय।।

नीचे देखकर सावधानी पूर्वक चलने के चार लाभ हैं। खोई हुई वस्तु मिल सकती है, दया भावना पुष्ट हो सकती है, हिंसा से बचाव हो सकता है और दृष्टिदोष टल सकता है।प्रेक्षाध्यान का संदर्भ में गमनयोग शब्द प्रयुक्त होता है। गमनयोग से तात्पर्य है कि मात्र गति पर ही ध्यान केंद्रित रखना। चलते समय बात करना, चिंतन करना आदि क्रियाएं सामान्यत: नहीं होनी चाहिए। सड़क पर चलने के कुछ नैतिक नियम भी हैं। सड़क के बीच में नहीं चलना चाहिए। कभी-कभी थोड़ी सी सुविधा के लिए आदमी जानता हुआ भी विपरीत साइड में चलने लगता है। किंतु नियम का अतिक्रमण कभी-कभी खतरे की घंटी बन सकता।
आचार्य महाश्रमण
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