May 9, 2012

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आंखों का सम्यक् उपयोग जरूरी



बालोतरा 07 May-२०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो


आंख होना एक बात है और उसका उपयोग करना दूसरी बात है। जिनके पास आंखें नहीं हैं उनके लिए उपयोग-दुरुपयोग का प्रश्न ही नहीं उठता। लेकिन जो देखने में समर्थ हैं, उनके लिए विचारणीय है कि वे आंखों का सम्यक् उपयोग करते हैं या दुरुपयोग करते हैं। कोई संतों के दर्शन करता है, अच्छा साहित्य पढ़ता है, अच्छे दृश्यों का अवलोकन करता है, अनिमेष प्रेक्षा करता है यह आंखों का सदुपयोग है। आंखों का दुरुपयोग भी हो सकता है। एक व्यक्ति आंखों से किसी को बुरी दृष्टि से देखता है, खराब दृश्य देखता है, अश्लील साहित्य पढ़ता है, जीवन को पतन की ओर ले जाने वाले दृश्यों को देखता है, यह आंखों का दुरुपयोग है। आंखें बहुत मूल्यवान हैं। विचारणीय बात यह है कि जिनको आंखे प्राप्त हैं वे उनका यथार्थ मूल्यांकन करते हैं या नहीं ? आंखों का मूल्य उनसे पूछा जाए, जिनके पास आंखें नहीं हैं। नेत्रहीन व्यक्ति की दुनिया बहुत छोटी होती है।

दृष्टि में बदलाव लाएं

किसी भी क्रिया के पीछे दृष्टिकोण होता है। बिल्ली अपने बच्चे को भी पकड़ती है और चूहे को भी पकड़ती है, पर दोनों की पकड़ में बहुत बड़ा अंतर होता है। बच्चे के प्रति ममता का भाव है, चूहे के प्रति क्रूरता का। बच्चे को बचा लेती है, चूहे को मार देती है। अंतर्दृष्टि का अंतर है। दृष्टि में अंतर आते ही परिणाम में अंतर आ जाता है। एक शल्य चिकित्सक भी पेट को औजार से चीरता है और एक डाकू भी पेट को छुरा घोंपकर चीरता है। पेट को चीरने की क्रिया एक होने पर भी दृष्टि की समानता नहीं है। डॉक्टर की दृष्टि व्यक्ति को जीवनदान देने पर टिकी है, डाकू की दृष्टि जीवन को लूटने पर टिकी है। दृष्टि में बदलाव आते ही सब कुछ बदल जाता है।
 

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