May 9, 2012

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साधना में ही असली सुख : आचार्य महाश्रमण



साधना में ही असली सुख : आचार्य
नया तेरापंथ भवन में धर्मसभा, प्रतियोगिता में झलका उत्साह
बालोतरा 7 मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो

दुनिया में प्राणी विभिन्न रूपों में दुख भोगते हैं। जन्म, मृत्यु व बुढ़ापा ये सभी दुखों के कारण हैं। बुढ़ापे में आदमी दूसरे के वश में हो जाता है। अगर इस समय व्यक्ति में समता व साधना न हो तथा उसको चित्त समाधि व सेवा न मिले तो बुढ़ापा काफी कष्ट पूर्ण हो जाता है। नया तेरापंथ भवन में रविवार को आयोजित धर्मसभा में आचार्य महाश्रमण ने ने ये विचार व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि बचपन, यौवन बीत जाने के बाद वापस नहीं आते हैं। इसलिए इन अव्यवस्थाओं का अच्छा उपयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आदमी एक दिन आता है, रहता है फिर चला जाता है। इसलिए व्यक्ति का जितना भी जीवनकाल हो, वह उसका अच्छा प्रयोग करें। आचार्य ने साधना की प्रेरणा देते हुए कहा कि पदार्थ जन्य सुख थोड़े समय के लिए होते हैं, पर साधना का सुख विशिष्ट होता है। इसलिए साधना व अध्यात्म के क्षेत्र में आगे बढ़ें। अनुप्रेक्षा भी साधना का एक प्रयोग है जो मन को एकाग्रता व विरक्त बनाता है।

मंत्री मुनि सुमेरमल ने धार्मिक व्यक्ति को निरंतर ज्ञान का विकास करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि व्यक्ति आस्था व संयम का विकास करे। यह विकास उस व्यक्ति को क्रमश: मोक्ष के समीप ले जाने वाला है। मंत्री मुनि ने कहा कि संयम के विकास के साथ ज्ञान का विकास आवश्यक है क्योंकि भाव धाराओं के शमन के लिए ज्ञान का विकास होना चाहिए, तभी वह स्फुरणा के साथ आगे बढ़ता है। कार्यक्रम में मुनि महावीर 'ज्योति का अवतार बाबा' गीत का सुंदर संगान किया। कार्यक्रम के अंत में प्रवास व्यवस्था समिति के महामंत्री शांतिलाल शांत व राजकुमार बरडिय़ा ने भाव व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार ने किया।

प्रतियोगिता में साध्वियों ने मारी बाजी:आचार्य महाश्रमण के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में साहित्य समिति की ओर से समायोजित उत्तराध्ययन सूत्र प्रतियोगिता में लगातार प्रथम व द्वितीय स्थान साध्वी समाज ने प्राप्त कर अपनी अर्हता का परिचय दिया। आचार्य महाश्रमण की सान्निध्य में हुई इस प्रतियोगिता में 5 समूह ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप व वीर्य बनाए गए थे। ज्ञान समूह में साध्वी अतुलयशा, साध्वी लक्ष्यप्रभा, साध्वी मिमांसाप्रभा व समणी प्रसन्नप्रभा, दर्शन ग्रुप में साध्वी सविता, साध्वी कार्तिक यशा, साध्वी मनोज्ञयशा, चारित्र ग्रुप में साध्वी रतिप्रभा, साध्वी सुमंगलप्रभा व समणी कंचनप्रभा तथा तप ग्रुप में मुनि कोमल कुमार, मुनि मृदु कुमार व मुनि शुभंकर तथा वीर्य ग्रुप में मुनि अनंत कुमार, मुनि महावीर कुमार व मुनि गौरव कुमार थे। इस कार्यक्रम में कुल पांच राउंड श्लोक, अर्थ, अर्थ से श्लोक, चरण व स्पीड राउंड हुए। उनके अंतिम परिणाम के रूप में साहित्य समिति की साध्वी जिनप्रभा ने ज्ञान समूह के 350 अंकों के साथ प्रथम, दर्शन ग्रुप 317 अंकों के साथ द्वितीय, वीर्य ग्रुप के 287 अंकों के साथ तृतीय, चारित्र ग्रुप के 261 अंकों के साथ चौथा और तप ग्रुप के 220 अंकों के साथ पांचवां स्थान प्राप्त करने की घोषणा की।

प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ व पंचम स्थान प्राप्त ग्रुप को आचार्य ने क्रमश: 31, 21, 11, 9 व 7-7 कल्याणक का उपहार दिया। बाल मुनि मृदु कुमार, मुनि शुभंकर व मुनि गौरव कुमार को अतिरिक्त 5-5 कल्याणक का उपहार दिया। प्रतियोगिता में निर्णायक मुनि दिनेश कुमार व साहित्य समिति की साध्वी स्वस्तिकप्रभा थीं। साध्वी स्वस्तिकप्रभा को आचार्य ने 13 कल्याणक का उपहार दिया। समय सचेतक मुनि गौतम कुमार को 5 कल्याणक का उपहार दिया। साहित्य समिति के मुनि जितेन्द्र कुमार की इस प्रतियोगिता की समायोजना में महत्वपूर्ण भूमिका रही। प्रतियोगिता का संचालन मुनि जितेन्द्र कुमार ने किया। आचार्य ने साहित्य समिति के ऐसे कार्यों की प्रशंसा करते हुए साहित्य समिति के प्रत्येक सदस्य को 51-51 कल्याणक का उपहार दिया। आचार्य ने कहा कि जिस मुख में उत्तराध्ययन जैसा आगम विराजित होता है, उच्चारित होता है। वह मुख भी पवित्र हो जाता है। साध्वी मिमांसाप्रभा ने अपने विचार व्यक्त किए।
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