May 12, 2012

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अच्छी संगति में बैठें


JTN 12 मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो के लिए

आओ हम जीना सीखें

आओ हम जीना सीखें



बालोतरा. किसके पास बैठना है, इसका भी अपना महत्व है। 'संगत रंगत लाती है' यह एक सार्थक कहावत है। व्यक्ति को जैसी संगति मिलती है, उसके जीवन की दिशा उसी ओर मुड़ जाती है। इसलिए इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि हमारी संगति कैसी हो?

ज्ञानी व्यक्ति की संगति ज्ञान की चेतना जगाती है और मूर्ख की संगति बुराइयों की ओर धकेलती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए मनुष्य को चाहिए कि वह सच्चे और अच्छे आदमी के पास अपनी ऊठ-बैठ रखे। संतों की सन्निधि में बैठने का अपना मूल्य है। भले उनकी बात समझ में आए या न आए, पर उनकी सन्निधि में जो समय बीतता है वह शुभ होता है। उस अवधि में व्यक्ति सहज ही कई बुराइयों से बच जाता है। संतो की सन्निधि में बैठा हुआ व्यक्ति सामान्यत: न झूठ बोलता है, न चोरी करता है, न नशा करता है और न गुस्सा करता है। यह बहुत बड़ा लाभ है। जीवनोपयोगी ज्ञान भी मिल सकता है इसलिए जहां भी मौका मिले, सत्संग का लाभ उठाना चाहिए।

सभा में कैसे बैठें?

किसी प्रवचन सभा में आदमी कैसे बैठे? इसका भी अपना महत्व है। जब व्यक्ति श्रोता बनकर बैठता है तो श्रोता का वक्ता के साथ तादात्म्य भाव जुडऩा आवश्यक है। श्रोता वक्ता को देवता के समान मानें। जैसे देव की पूजा एकाग्रता के साथ की जाती है, वैसे ही श्रोता वक्ता को देवता की भांति ध्यान से सुने। उसके साथ गहरा तादात्म्य भाव स्थापित करे। ऐसा करके ही वह प्रवचन का रसास्वादन कर सकता है। वक्ता भाषण दे और श्रोता नींद लेनी शुरू कर दे या बातें करनी शुरू कर दे तो वक्ता का उत्साह मंद हो जाता है। ध्यान से सुनने वाले श्रोता मिलें तो वक्ता का उत्साह दुगुना हो जाता है और वह ज्यादा उत्साह के साथ अपनी बात प्रस्तुत कर सकता है।

आचार्य महाश्रमण


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