आत्मा और शरीर को अलग मानने से टूटता है मोह का बंधन: महाश्रमण
धर्मसभा में दी धर्म की राह पर चलने की सीख
बालोतरा
शरीर अलग है, जीव अलग है। अध्यात्म की साधना का बहुत बड़ा आधार शरीर व आत्मा का अलग-अलग होना है। जैन तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने मंगलवार को नया तेरापंथ भवन में धर्मसभा को संबोधित करते हुए ये उद्गार व्यक्त किए। आचार्य ने कहा कि व्यक्ति को अनुप्रेक्षा करनी चाहिए कि शरीर व आत्मा भिन्न है। मैं शरीर नहीं आत्मा हूं। इस प्रकार शरीर व आत्मा का अलग-अलग होना व्यक्ति के मन में आता है तो मोह को टूटने का मौका मिलता है और अध्यात्म की भावना जागने लग जाती है। आचार्य ने प्रेरणा देते हुए कहा कि साधक शरीर को भाड़े के रूप में भोजन दें। भोजन के साथ मूर्छा का भाव न रखें। साधु रोग को समता भाव से सहन करते हुए शरीर व आत्मा की भिन्नता की अनुप्रेक्षा करे तो कष्टदायी रोग भी सहन किया जा सकता है। व्यक्ति आत्मा व शरीर के अलग-अलग होने का अनुचिंतन करे तो मूच्र्छा का भाव खत्म हो सकता है। आचार्य ने 'चैत्य पुरुष जग जाए' गीत का संगान किया तो पूरी परिषद भाव विह्वल हो उठी।मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि व्यक्ति को जागने और अपने लक्ष्य को समझने के बाद प्रमाद नहीं करना चाहिए, क्योंकि मनुष्य जीवन ही ऐसा है जिसमें व्यक्ति मंजिल को नजदीक कर सकता है और प्राप्त भी कर सकता है। कार्यक्रम के प्रारंभ में मुनि राजकुमार ने 'उठ जाग मुसाफिर' गीत की प्रस्तुति दी।कार्यक्रम के अंत में गुरूदेव के बालोतरा प्रवास के उपलक्ष्य में मीरा अग्रवाल की ओर से अठाई का प्रत्याख्यान किया गया। अनिता मुंडिया की ओर से इस संदर्भ में गीत की प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार ने किया।
विवेक संयम की ओर अग्रसर:मुमुक्षु विवेक बोथरा ने आचार्य से अपनी दीक्षा की अर्ज की। संयम प्रदाता आचार्य ने इस 10 वर्षीय मुमुक्षु की भावना का सम्मान करते हुए 21 जून को पचपदरा में साधु दीक्षा देने की घोषणा के साथ साधु-प्रतिक्रमण सीखने का आदेश दिया।
इस कार्यक्रम में मुमुक्षु भाई धीरज जैन (तोषाम, हरियाणा) की अर्ज पर साधु-प्रतिक्रमण सीखने का आदेश दिया।
Post a Comment